मैं फिर आऊँगा

रवि कुमार मैं फिर आऊँगाजब तुम्हें मेरी ज़रूरत होगी दर्द का एहसासमुझे भी होता हैमेरे सीने से भी चीख निकलती हैआँखो के पर्दे फाड़ देइतनी तेजलेकिन तुम तो बहरोके नगर के राजा होतुम्हें कैसे सुनाई देती तुम्हें महसूस होता हैजब वार होतुम्हारी दौलत परइकट्ठा किया है जिसकोतुमने ग़रीबी के खून बहा करजिससे बू आती हैउन… Read More मैं फिर आऊँगा

पतझड़ से उम्मीदों का जन्म

पतझड़ के मौसम ने रंग दिया इन सड़कों कोअरसों के बाद, बरसों के बादपत्तों को इतनी शांति सेसड़कों पर सोते देखाकिसी ने रौंदने की जुर्रत नहीं कीकिसी ने उन्हें बेज़ुबान नहीं समझाऔर अनचाहे रिश्तों की तरहदरकीनार नहीं कियाकौन कहता है पेड़ों से जुदा होकरउनकी हुस्न में कमी आयी होकौन कहता है उनकी दास्तानअनचाहे रिश्तों की… Read More पतझड़ से उम्मीदों का जन्म